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Sunday, March 27, 2011
reenakari: तन्हाई का क़र्ज़ है
reenakari: तन्हाई का क़र्ज़ है: " हार जीत की परवा तो कमज़ोर लोग करतें हैं ,सिखने के लिये &nbs..."
reenakari: किसको अपना कहे
reenakari: किसको अपना कहे: " हम किसको अपना कहे , जिसको अपना कहा , वो ही साथ छोड़ चला , ... डर जाते हैं अब हम , सहम जाता है दिल , जबही अब कोई दस्तक देता है , ..."
किसको अपना कहे
हम किसको अपना कहे ,
जिसको अपना कहा ,
वो ही साथ छोड़ चला ,
...
डर जाते हैं अब हम ,
सहम जाता है दिल ,
जबही अब कोई दस्तक देता है ,
डर तो लगता हैं ,
अब तनहिया भी कही ,
साथ ना छोड़ जाये ,
जिसको अपना कहा ,
वो ही साथ छोड़ चला ,
...
डर जाते हैं अब हम ,
सहम जाता है दिल ,
जबही अब कोई दस्तक देता है ,
डर तो लगता हैं ,
अब तनहिया भी कही ,
साथ ना छोड़ जाये ,
Thursday, March 10, 2011
reenakari: वो भी कही से आती नही
reenakari: वो भी कही से आती नही: "किसी की रातो में सितारे भी ग़ज़ल गुनगुनाते हैं , &..."
reenakari: वो भी कही से आती नही
reenakari: वो भी कही से आती नही: "किसी की रातो में सितारे भी ग़ज़ल गुनगुनाते हैं , &..."
reenakari: जैसे चाँद से चांदनी रूठ कर चले
reenakari: जैसे चाँद से चांदनी रूठ कर चले: " आजाता है जीकर उनका हर बार कुछ इस तरहां , उनका जीकर भी ना करू ,आजाता&nbs..."
जैसे चाँद से चांदनी रूठ कर चले
आजाता है जीकर उनका हर बार कुछ इस तरहां ,
उनका जीकर भी ना करू ,आजाता है जीकर उनका हर बार कुछ इस तरहां ,
वो कहते हैं हमारी बाते ना करो ,आ जाती हैं उनकी बाते हर बार कुछ इस तरहां ,
वो हम से रूट कर दूर निकल चले ,आ जाते हैं फिर हर बस साथ हमारे कुछ इस तरहां ,
जैसे चाँद से चांदनी रूठ कर चले ,ऐसा है उनका रिश्ता हर बार हमसे कुछ इस तरहां ,
भला कैसे उनकी बातो पर गोर करू ,हर बात उनकी हमे अपनी सासों जैसे लगे ,
Tuesday, March 8, 2011
reenakari: वर्तमान काफी होगा '' नारी ''
reenakari: वर्तमान काफी होगा '' नारी '': "womenday जब सुनती हु ,तो अजीब सा एसास होता है ,मैं स्वय भी इसी दायरे में आती हु जो मेरे लिये भी मनाया जाता है ,पर क्यों ? अब..."
वर्तमान काफी होगा '' नारी ''
womenday जब सुनती हु ,तो अजीब सा एसास होता है ,मैं स्वय भी इसी दायरे में आती हु जो मेरे लिये भी मनाया जाता है ,पर क्यों ? अब इसको मनाया कैसे जाये ,birthday के जैसे cake काट कर या ..valenteinday के जैसे DATE मारकर ...,
बेहद सोचनिये विषये है और उसे मनाने की बाते हो रही हैं ,चलो भाई क्या बस कुछ महिला संगटनो के दुआर कुछ आयोजन आयोजित कर दे ,कुछ महिलाओ के पक्ष की , हक़ की बाते करदे
..,
आज अपनी पढाई सम्बन्धी कक्षा में गई तो अध्यापक भी महिला दिवस पर शुभ-कामनाए दे रहे थे ,कुछ विधार्थी उनके विचारो में प्रतिरोध उत्पन कर रहे थे ,क्यों की वो गम्भीर विषये 'महिला दिवस 'को दिवस मानकर मनाने के समर्थन में केवल ना थे ,
कुछ सुधार प्रगतिशील और वास्तविक रूप में भी अवश्येभामी है ,
घर लोटी net -connect किया f .b पर पहुची दोस्तों की पोस्ट women -day पर ,
hummm ...कल से सोच रही हु क्या लिखू इस विषये पर ...सब की लेखनी देख कर लगा ,मैं भी कुछ लिखू ,और फिर ये मेरा ही दिन है ,अपने दिन पर मुझे लिखने का हक़ है ,पर समझ नही आ रहा सब किताबी बाते लिखू ? कही जयदा लम्बा विषये रहा तो कोण पड़ेगा ...सब ऊब जायेगे ...,आखिर एक '' नारी '' का विषय पढ़ कर करेगे क्या ,१०० सालो से वही सब लिखा जा रहा है ,क्यों मनाया जाता है ,किस लिये ,कब से ,संसार में महिलाओ की स्तिथि क्या ,कोंन काल में किस स्तिथि में थी ,नारी ....आदि आदि ,
मुझे लगता है आज एतिहासिक बातो को भुला भी दिया जाये तो कोई नुकसान ना होगा ,
पर वर्तमान हालात को कन्द्रित कर अगर ''नारी '' को समझने की कोशिश की जाये ,तो काफी होगा ,
''जगत जननी नारी ''का स्थान क्या हो ,ये तये करना नारी ,का विषय है या पुरुष का ?
पता नही किसी ''स्थान'' की बाते हम क्यों करते हैं ,
आवश्यकता तो बस इतने की है की जो हक़ जिसका हो उसको मिले ,
जीवन सबके लिये बराबर ही तो है ,''स्थान ''का सवाल रहेगा तो ...मैं इस स्थान पे रहूगा तुम उस स्थान पे रहो गी ...,ये सब यु ही चलता रहेगा ,स्थान की बात छोड़ कर मानवता के दृष्टिकोण से देखे तो शायद इतियाहस से सिखने की जरुरत नहीं ,वर्तमान काफी होगा ,
बस आज से मैं तो वर्तमान में जियूगी और अपना हक़ ले के रहूगी,...''इस दिवस को ऐसे ही मानोउगी वर्तमान में जीकर ''...,!
Thursday, March 3, 2011
reenakari: baatein beet jane k leye
reenakari: baatein beet jane k leye: " baatein beet jane k leye hoti hain ..., aur yaadein uun baato ko bitne nahi deti..., inn mein se gar ek ka vazud bhi na hota, t..."
reenakari: बचपन के बिना बचपन ...!
reenakari: बचपन के बिना बचपन ...!: "बचपन के बिना बचपन ...! जीवन के आखरी पड़ाव पर जब पहुच जाये कोई और उससे पूछा जाये ,की यदि जीवन का कोई एक पड़ाव फिर से जीने को मिले तो वो क..."
बचपन के बिना बचपन ...!
बचपन के बिना बचपन ...!
जीवन के आखरी पड़ाव पर जब पहुच जाये कोई और उससे पूछा जाये ,की यदि जीवन का कोई एक पड़ाव फिर से जीने को मिले तो वो कोंन सा जीवन को जीना पसंद करेगा ...जवाव सवाभाविक होगा जवानी या बचपन ,जवानी में भी वो मज़ा ना रहा होगा जो बचपन में मिला था ,यू तो जवानी के बारे में कहा जाता है एक बार जाये तो वापस ना आये ,पर एसा तो कुछ भी नही जो वापस आ सके ,
पर बचपन तो वो यादें होती हैं जो उम्र के हर पड़ाव पर हमारे साथ होती हैं ,किसी भी समय में हताश -निराश बैठे हों और शुरू कर दो बचपन की बाते ,अरे...!हताशा -निराशा एक दम छु -मंतर ,...हैं ना !
कभी सोचा है ,यदि ये बचपन की यादे जीवन में ना बनती ,तो कुछ कमी सी तो जरुर खलती ,कुछ अभाव सा महसूस तो होता कुछ होता जो सोचने को ,याद करने को ,बनता ही नही ,जो हमारे चहेरे पर मुस्करहट ला देता है ,वो बचपन की यादें ना होने पर जीवन अधुरा सा तो लगता ही ...?
अपने जीवन को हम अपने बचपन के बिना कल्पना भी नही कर सकते ,पर कुछ ऐसे अभागे बच्चे हैं ,जो वो यादे बुन ही नहीं सकते जो उनके जीवन में अधूरे पन को भरेगी ,खाली बैठे समय में उन्हें मुस्कान देगी ,एक खिड़की खोल कर जो गमो के मोसम में भी खुशियों की लहेरे देगी ...!वो ना लोट आने वाले बचपन के अभाव में भारत में १९८६ राष्टीय नमूना सर्वेक्षण संगठन के अनुसार ,१ करोड़ ७३ लाख ,बच्चे अपने बचपन से म्हेरुह्म हैं ,
जगजीत सिंह की कुछ पंक्तिया याद आती है ,...
''ये दोलत भी लेलो ,ये शोरत भी लेलो ,
भले छीन लो मुझसे मेरी जवानी ,
पर मुझको लोतादो वो बारिश का पानी ,वो कागज़ की कश्ती ,
....ये दोलत भी ....
ये पंक्तिया अपने जीवन को दोबारा जीने की और इशारा कर रही है ,जगजीत सिंह की तरह हम लोग भी समान्य है ,जो ये फरियाद कर सकते हैं ,बचपन को कोई लोटा दे ये कहे सकते हैं ,
ये कहे देने में ही सब कुछ जी लिया ,...बचपन तो लोटे ना लोटे पर ये फरियाद करने में ही सकू भी छिपा है ,ख़ुशी भी एक एसास भी ,जो कोई नही छीन सकता ...,
पर उन् अभागे बच्चो को तो ये फरियाद करने का हक़ भी नहीं मिला ,
''बुन पाते गर कोई पल ,
ऐसा कुछ सामान भी ना मिला ,
लिख पाता तक़दीर में कुछ ,
पर लिखने को वो हाथ भी ना मिला ''
२००६ बालषम कानून संशोधन के बाद भी कई षेत्रो में कानून की अनदेखी हो रही है ,राजधानी देहली में ही ६०००० बच्चे बालषम के रूप में ढ़ाबो और चाये की दुकानों पर लगे है ,अन्य राज्यों में भी हालात देनिये है आकड़ो को लिखने लगे तो उन्ही पर नज़र ठेर सकती है आकड़ो से हटकर कुछ और भी जरुरत है बहार निकलते समय नजरो के सामने आते उन् अभागे बच्चो पर सबका धयान जाता तो होगा पर केन्द्रित नही होता होगा ,जरुरत है तो धयान केन्द्रित करने की ,उस मासूम बचपन पर जो बचपान के बावजूद बचपन नही जी पा रहे ,अपने हाथो में तक़दीर बनाने की जगह वे बीडी -माचिस ,चूड़ी ...का निर्माण कर रहे है जो औरो के हाथ की शोभा बनेगी ,पर बचपन से महरूम बच्चो के हाथो में घाव दे रही हैं जो बीडी किसी की गश का आनंद बन सकू देगी वो बचपन से म्हेरुम बच्चो का चेअन छीन रही हैं ,
मिस्टर इंडिया ,सिंड्रेला ,लाल परी,की कहानियो का अभाव ,शिक्षा ग्रहण कर एक अच्हा नागरिक बनने का और देश का भविष्य बनने
का अवसर नहीं ,
जिस देश में प्रथम प्रधान मंत्री पंडित जहवार लाल नेहेरू ने बच्चो के म्हेत्व को इंगित करते हुवे अपने जन्मदिन को बालदिवस के रूप में रूपांतरित करा ,
वाही उसी भारत देश का बालसम में संसार के सबसे उच्चे स्थान पर विराजमान होना ,अपने आप में देनिये है ,
Wednesday, March 2, 2011
reenakari: reenakari: समाज का एक पहलु ye bhi...
reenakari: reenakari: समाज का एक पहलु ye bhi...: "reenakari: समाज का एक पहलु ye bhi...: 'समाज का एक पहलु बेहद घिनोना भी है ,जो समाज के रख वाले बने फिरते हैं ,जो रीती -रिवाजों के नाम पर फरमान..."
reenakari: समाज का एक पहलु ye bhi...
reenakari: समाज का एक पहलु ye bhi...: "समाज का एक पहलु बेहद घिनोना भी है ,जो समाज के रख वाले बने फिरते हैं ,जो रीती -रिवाजों के नाम पर फरमान बनाते फिरते हैं ,क्या वे इस पहलु पर गो..."
समाज का एक पहलु ye bhi...
समाज का एक पहलु बेहद घिनोना भी है ,जो समाज के रख वाले बने फिरते हैं ,जो रीती -रिवाजों के नाम पर फरमान बनाते फिरते हैं ,क्या वे इस पहलु पर गोर नहीं करते या फिर पाखंडपूर्ण जीवन में इस कदर व्यस्त है की किसी ओर पक्ष पर धयान नहीं ,मैं उस घिनोने समाज के पहलु की बात कर रही हु ..जिस में ऐसी कई घटनाये घटी हैं जहाँ ,अपनी ही बेटी से किसी पिता ने बलात्कार क्या ,योन-शोषण किया ,कई बार माता का साथ भी पिता को इस कार्य के लिये मिला ,क्या ये दुर्भाग्यपूर्ण बात नही ...?की जिस समाज में किसी प्रेमी युगल की इस लिये हत्या कर दी जाती क्यों की उन्होंने समाज के रीती -रिवाजों को तोडा जो आज -कल खूब चर्चा में हैं 'आनौरकिल्लिंग'
जिसे लेकर खाप-पंचायेतें बड़े उग्र रूप में देखती हैं ,ओर फरमान पे फरमान जारी करती हैं ,
अपने ही गाँव के किसी युवक -युवती से प्रेम सम्बन्ध होने पर पूरा का पूरा गाँव ओर खाप पन्चायेते उसके जान की दुश्मन बन जाती हैं ,प्रेम करना अपराध बना दिया जिसमें अनेक समस्याओ को झेलना पड़ता है ,ओर हत्या का शिकार होना पड़ता है ,
वही जो बाप अपनी ही बेटी का योन -शोषण ,बलात्कार करता है ,वो कई क़ानूनी बारीकियो का फायेदा उठा कर मुक्त भी हो जाता है ,शायद रीती -रिवाजों के ठेकेदारों को इससे कोई लाभ नही मेलेगा या यु कहे की ये उनके तानाशाही सोच के अंतर्गत नहीं आते ,क्यों की ये पहलु तो मानवता की सीमा को पर कर गया ओर मानवता की सीमा तो खाप-पन्चायेते भी पर कर जाती हैं भला अपने समान पहुचने वाले अपराध के खिलाफ कैसे आवाज़ उठा सकतें हैं ,
इन् ठेकेदारों का कार्य तो तानाशाही सोच के अंतर्गत आता है ,लड़कियां जिस्न्स ना पहेने ,मोबाईल फोन ना रखे ,वाय्ग्येरा -वाय्ग्येरा ...इस तानाशाही सोच के बहार के मुदो से उनका कोई सरोकार नही,
राष्टीय महिला आयोग और महिला संगठनों के अस्तित्व में आने से केवल महिलाओ के प्रति होते हत्याचार को नही रोका जा सकता ,इस के लिये समाज को अपनी मानसिकता को झंजोरना पड़ेगा ,अपने विचारो को उन्नत करना होगा ,अपने दुआर बनाये गए रीती -रिवाजों से ऊपर उठ कर मानवता की ,प्रेम की ,सन्हे की ,अहिंसा की बातो पर विचार करना होगा ,जो बेहद कठिन प्रतीत होता है ,क्यों की आज के समाज में लोगो को ये आदत हो चुकी है की कोई उन्हें बताये क्या करना है ,क्या नही ....जो अपने ऊपर एक ऐसे अधिकारी की कल्पना करते हैं ,जो उनका मार्गदर्शन करे ,क्यों की मानव की समाज में सोचने की ,विचार करने की षमता शिन हो गाई,
हैं ,उसमें सही गलत का फ्हेसला करने की प्रवति ख़त्म होती जा रही है ,
समाज मैं शमता हैं तो बस वो करने की जो उन्हें कोई बताये उन्हें क्या करना है ,खुद तो वे सोच -विचार करने में असमर्थ दिखतें हैं ,
समाज के दुर्भाग्येपूर्ण पहलु पर नज़र पड़ भी जाये तो कुछ समय तक उसकी चर्चा कर के भूल जाते हैं ,किन्तु कोई भी समाज का टेकेदार इन् पहलुओ को उस हद तक नहीं लेकर जाता जहाँ मानवता की सीमा को छु सके और उनके लिये सन्हें ,प्रेम ,दया ,सत्ये ,अहिंसा और कर्तव्य के दुवार खुले गे ,शायद उनको दुवार खोलने से डर लगता हैं क्योकि वे एक तानाशाही सोच के साथ जीते हैं ,जो ये तय करते हैं की समाज को क्या करना चाहेये ,क्या नहीं ...?
ये विचार करने का कार्य तानाशाही सोच वालो के पास नहीं है ,
*२००८ में उड़ीसा के मल्कनाग्री के कुद्मुलुग्राम गाँव में ३७ वर्षीय भगवन दाकु को अपनी १४ वर्षीय बेटी के साथ बलात्कार के आरोप में गिरफ्तार किया ,
*राजधानी दिल्ली के मंगोलपुरी इलाके में १४ वर्षीय ,सोतेली पुत्री के साथ बलात्कार किया ,राजेश कुमार को गिरफ्तार किया ,
*२० वर्षीय कॉलेज स्टुडेंट ने अपने पिता पर ८ वर्षो से योन -शोषण का आरोप लगाया,आरोपी पिता भाजपा इकाई के महासचिव अशोक को हर्दये की परेशानी और असमान्ये लगने के कारन अस्पताल दाखिल कराया ,
*फिलोरा -जालंदर में NIR पिता को १३ वर्षीय अपने बेटी के योन -शोषण के मामले में गिरफ्तार किया ,
*हरियाणा में सोनीपत जिले में एक पिता ने १४ वर्षीय बेटी के साथ डेड साल तक बलात्कार क्या ,
*केवड़ा गाँव के इन्द्रेश गुजर -ऋतू हरिजन प्रेम सम्बन्ध के चलते बुलंद शहर जा कर शाहदी कर ली ,समाज के ठेकेदारों ने उनके परिवार को गाँव से बहिस्कृत कर देय और ऋतू का उसकी माँ के सामने सामूहिक बलात्कार कर बेरहमी से हत्या कर शव को उत्तराखंड उ.प की सीमा पर एक खेत में फ्हेक देय ,
*मार्च में ही मुंबई पुलिस ने एक ६० साल के व्यापारी को अपनी बेटी के साथ बलात्कार करने के आरोप में गिरफ्तार क्या ,जिसमे बेटी की माँ भी शामिल थी ,उन्होंने कहा की ऐसा वे एक तांत्रिक के कहेने पर करते थे ,जिसे घर में तरकी होनी थी ,
*झारखण्ड में एक डोक्टर पिता को अपनी विज्ञानं की पड़ाई,कर रही बेटी का कई वर्षो तक योन -शोसन के आरोपी पिता को गिरफ्तार क्या ,
समाज मैं ऐसी अनगिनत घटनाये होती हैं जहा रक्षक ही भक्षक बनजाता है जो अपने आप में ये समाज का दुर्भाग्य पूर्ण पहलु है ,
इन् रीती-रिवाजों के चलते कई महिलाये ,माँ ,बहेन,बेटी ,अन्याय का खिलाफ आवाज़ नही उठाती ,
क्या ये रीती-रिवाज़ इस लिये बने है जो न्याय के रस्ते में रोड़े अटकाए ,?
मनुष्य विचारशील है जो उसको अन्य पशु ,जानवर ,से अलग करता है ,यदि अपनी विचारशीलता का उपयोग बंद करदे तो मनुष्य ,मनुष्य रूप में होकर भी पशु योनी में जी रहा है ,
जो विचारशील नही है वो अन्याय के खेलाफ़ मुह बंद केए है ...,
जिसे लेकर खाप-पंचायेतें बड़े उग्र रूप में देखती हैं ,ओर फरमान पे फरमान जारी करती हैं ,
अपने ही गाँव के किसी युवक -युवती से प्रेम सम्बन्ध होने पर पूरा का पूरा गाँव ओर खाप पन्चायेते उसके जान की दुश्मन बन जाती हैं ,प्रेम करना अपराध बना दिया जिसमें अनेक समस्याओ को झेलना पड़ता है ,ओर हत्या का शिकार होना पड़ता है ,
वही जो बाप अपनी ही बेटी का योन -शोषण ,बलात्कार करता है ,वो कई क़ानूनी बारीकियो का फायेदा उठा कर मुक्त भी हो जाता है ,शायद रीती -रिवाजों के ठेकेदारों को इससे कोई लाभ नही मेलेगा या यु कहे की ये उनके तानाशाही सोच के अंतर्गत नहीं आते ,क्यों की ये पहलु तो मानवता की सीमा को पर कर गया ओर मानवता की सीमा तो खाप-पन्चायेते भी पर कर जाती हैं भला अपने समान पहुचने वाले अपराध के खिलाफ कैसे आवाज़ उठा सकतें हैं ,
इन् ठेकेदारों का कार्य तो तानाशाही सोच के अंतर्गत आता है ,लड़कियां जिस्न्स ना पहेने ,मोबाईल फोन ना रखे ,वाय्ग्येरा -वाय्ग्येरा ...इस तानाशाही सोच के बहार के मुदो से उनका कोई सरोकार नही,
राष्टीय महिला आयोग और महिला संगठनों के अस्तित्व में आने से केवल महिलाओ के प्रति होते हत्याचार को नही रोका जा सकता ,इस के लिये समाज को अपनी मानसिकता को झंजोरना पड़ेगा ,अपने विचारो को उन्नत करना होगा ,अपने दुआर बनाये गए रीती -रिवाजों से ऊपर उठ कर मानवता की ,प्रेम की ,सन्हे की ,अहिंसा की बातो पर विचार करना होगा ,जो बेहद कठिन प्रतीत होता है ,क्यों की आज के समाज में लोगो को ये आदत हो चुकी है की कोई उन्हें बताये क्या करना है ,क्या नही ....जो अपने ऊपर एक ऐसे अधिकारी की कल्पना करते हैं ,जो उनका मार्गदर्शन करे ,क्यों की मानव की समाज में सोचने की ,विचार करने की षमता शिन हो गाई,
हैं ,उसमें सही गलत का फ्हेसला करने की प्रवति ख़त्म होती जा रही है ,
समाज मैं शमता हैं तो बस वो करने की जो उन्हें कोई बताये उन्हें क्या करना है ,खुद तो वे सोच -विचार करने में असमर्थ दिखतें हैं ,
समाज के दुर्भाग्येपूर्ण पहलु पर नज़र पड़ भी जाये तो कुछ समय तक उसकी चर्चा कर के भूल जाते हैं ,किन्तु कोई भी समाज का टेकेदार इन् पहलुओ को उस हद तक नहीं लेकर जाता जहाँ मानवता की सीमा को छु सके और उनके लिये सन्हें ,प्रेम ,दया ,सत्ये ,अहिंसा और कर्तव्य के दुवार खुले गे ,शायद उनको दुवार खोलने से डर लगता हैं क्योकि वे एक तानाशाही सोच के साथ जीते हैं ,जो ये तय करते हैं की समाज को क्या करना चाहेये ,क्या नहीं ...?
ये विचार करने का कार्य तानाशाही सोच वालो के पास नहीं है ,
*२००८ में उड़ीसा के मल्कनाग्री के कुद्मुलुग्राम गाँव में ३७ वर्षीय भगवन दाकु को अपनी १४ वर्षीय बेटी के साथ बलात्कार के आरोप में गिरफ्तार किया ,
*राजधानी दिल्ली के मंगोलपुरी इलाके में १४ वर्षीय ,सोतेली पुत्री के साथ बलात्कार किया ,राजेश कुमार को गिरफ्तार किया ,
*२० वर्षीय कॉलेज स्टुडेंट ने अपने पिता पर ८ वर्षो से योन -शोषण का आरोप लगाया,आरोपी पिता भाजपा इकाई के महासचिव अशोक को हर्दये की परेशानी और असमान्ये लगने के कारन अस्पताल दाखिल कराया ,
*फिलोरा -जालंदर में NIR पिता को १३ वर्षीय अपने बेटी के योन -शोषण के मामले में गिरफ्तार किया ,
*हरियाणा में सोनीपत जिले में एक पिता ने १४ वर्षीय बेटी के साथ डेड साल तक बलात्कार क्या ,
*केवड़ा गाँव के इन्द्रेश गुजर -ऋतू हरिजन प्रेम सम्बन्ध के चलते बुलंद शहर जा कर शाहदी कर ली ,समाज के ठेकेदारों ने उनके परिवार को गाँव से बहिस्कृत कर देय और ऋतू का उसकी माँ के सामने सामूहिक बलात्कार कर बेरहमी से हत्या कर शव को उत्तराखंड उ.प की सीमा पर एक खेत में फ्हेक देय ,
*मार्च में ही मुंबई पुलिस ने एक ६० साल के व्यापारी को अपनी बेटी के साथ बलात्कार करने के आरोप में गिरफ्तार क्या ,जिसमे बेटी की माँ भी शामिल थी ,उन्होंने कहा की ऐसा वे एक तांत्रिक के कहेने पर करते थे ,जिसे घर में तरकी होनी थी ,
*झारखण्ड में एक डोक्टर पिता को अपनी विज्ञानं की पड़ाई,कर रही बेटी का कई वर्षो तक योन -शोसन के आरोपी पिता को गिरफ्तार क्या ,
समाज मैं ऐसी अनगिनत घटनाये होती हैं जहा रक्षक ही भक्षक बनजाता है जो अपने आप में ये समाज का दुर्भाग्य पूर्ण पहलु है ,
इन् रीती-रिवाजों के चलते कई महिलाये ,माँ ,बहेन,बेटी ,अन्याय का खिलाफ आवाज़ नही उठाती ,
क्या ये रीती-रिवाज़ इस लिये बने है जो न्याय के रस्ते में रोड़े अटकाए ,?
मनुष्य विचारशील है जो उसको अन्य पशु ,जानवर ,से अलग करता है ,यदि अपनी विचारशीलता का उपयोग बंद करदे तो मनुष्य ,मनुष्य रूप में होकर भी पशु योनी में जी रहा है ,
जो विचारशील नही है वो अन्याय के खेलाफ़ मुह बंद केए है ...,
समाज का एक पहलु ये भी ....
समाज का एक पहलु बेहद घिनोना भी है ,जो समाज के रख वाले बने फिरते हैं ,जो रीती -रिवाजों के नाम पर फरमान बनाते फिरते हैं ,क्या वे इस पहलु पर गोर नहीं करते या फिर पाखंडपूर्ण जीवन में इस कदर व्यस्त है की किसी ओर पक्ष पर धयान नहीं ,मैं उस घिनोने समाज के पहलु की बात कर रही हु ..जिस में ऐसी कई घटनाये घटी हैं जहाँ ,अपनी ही बेटी से किसी पिता ने बलात्कार क्या ,योन-शोषण किया ,कई बार माता का साथ भी पिता को इस कार्य के लिये मिला ,क्या ये दुर्भाग्यपूर्ण बात नही ...?की जिस समाज में किसी प्रेमी युगल की इस लिये हत्या कर दी जाती क्यों की उन्होंने समाज के रीती -रिवाजों को तोडा जो आज -कल खूब चर्चा में हैं 'आनौरकिल्लिंग'
जिसे लेकर खाप-पंचायेतें बड़े उग्र रूप में देखती हैं ,ओर फरमान पे फरमान जारी करती हैं ,
अपने ही गाँव के किसी युवक -युवती से प्रेम सम्बन्ध होने पर पूरा का पूरा गाँव ओर खाप पन्चायेते उसके जान की दुश्मन बन जाती हैं ,प्रेम करना अपराध बना दिया जिसमें अनेक समस्याओ को झेलना पड़ता है ,ओर हत्या का शिकार होना पड़ता है ,
वही जो बाप अपनी ही बेटी का योन -शोषण ,बलात्कार करता है ,वो कई क़ानूनी बारीकियो का फायेदा उठा कर मुक्त भी हो जाता है ,शायद रीती -रिवाजों के ठेकेदारों को इससे कोई लाभ नही मेलेगा या यु कहे की ये उनके तानाशाही सोच के अंतर्गत नहीं आते ,क्यों की ये पहलु तो मानवता की सीमा को पर कर गया ओर मानवता की सीमा तो खाप-पन्चायेते भी पर कर जाती हैं भला अपने समान पहुचने वाले अपराध के खिलाफ कैसे आवाज़ उठा सकतें हैं ,
इन् ठेकेदारों का कार्य तो तानाशाही सोच के अंतर्गत आता है ,लड़कियां जिस्न्स ना पहेने ,मोबाईल फोन ना रखे ,वाय्ग्येरा -वाय्ग्येरा ...इस तानाशाही सोच के बहार के मुदो से उनका कोई सरोकार नही,
राष्टीय महिला आयोग और महिला संगठनों के अस्तित्व में आने से केवल महिलाओ के प्रति होते हत्याचार को नही रोका जा सकता ,इस के लिये समाज को अपनी मानसिकता को झंजोरना पड़ेगा ,अपने विचारो को उन्नत करना होगा ,अपने दुआर बनाये गए रीती -रिवाजों से ऊपर उठ कर मानवता की ,प्रेम की ,सन्हे की ,अहिंसा की बातो पर विचार करना होगा ,जो बेहद कठिन प्रतीत होता है ,क्यों की आज के समाज में लोगो को ये आदत हो चुकी है की कोई उन्हें बताये क्या करना है ,क्या नही ....जो अपने ऊपर एक ऐसे अधिकारी की कल्पना करते हैं ,जो उनका मार्गदर्शन करे ,क्यों की मानव की समाज में सोचने की ,विचार करने की षमता शिन हो गाई,
हैं ,उसमें सही गलत का फ्हेसला करने की प्रवति ख़त्म होती जा रही है ,
समाज मैं शमता हैं तो बस वो करने की जो उन्हें कोई बताये उन्हें क्या करना है ,खुद तो वे सोच -विचार करने में असमर्थ दिखतें हैं ,
समाज के दुर्भाग्येपूर्ण पहलु पर नज़र पड़ भी जाये तो कुछ समय तक उसकी चर्चा कर के भूल जाते हैं ,किन्तु कोई भी समाज का टेकेदार इन् पहलुओ को उस हद तक नहीं लेकर जाता जहाँ मानवता की सीमा को छु सके और उनके लिये सन्हें ,प्रेम ,दया ,सत्ये ,अहिंसा और कर्तव्य के दुवार खुले गे ,शायद उनको दुवार खोलने से डर लगता हैं क्योकि वे एक तानाशाही सोच के साथ जीते हैं ,जो ये तय करते हैं की समाज को क्या करना चाहेये ,क्या नहीं ...?
ये विचार करने का कार्य तानाशाही सोच वालो के पास नहीं है ,
*२००८ में उड़ीसा के मल्कनाग्री के कुद्मुलुग्राम गाँव में ३७ वर्षीय भगवन दाकु को अपनी १४ वर्षीय बेटी के साथ बलात्कार के आरोप में गिरफ्तार किया ,
*राजधानी दिल्ली के मंगोलपुरी इलाके में १४ वर्षीय ,सोतेली पुत्री के साथ बलात्कार किया ,राजेश कुमार को गिरफ्तार किया ,
*२० वर्षीय कॉलेज स्टुडेंट ने अपने पिता पर ८ वर्षो से योन -शोषण का आरोप लगाया,आरोपी पिता भाजपा इकाई के महासचिव अशोक को हर्दये की परेशानी और असमान्ये लगने के कारन अस्पताल दाखिल कराया ,
*फिलोरा -जालंदर में NIR पिता को १३ वर्षीय अपने बेटी के योन -शोषण के मामले में गिरफ्तार किया ,
*हरियाणा में सोनीपत जिले में एक पिता ने १४ वर्षीय बेटी के साथ डेड साल तक बलात्कार क्या ,
*केवड़ा गाँव के इन्द्रेश गुजर -ऋतू हरिजन प्रेम सम्बन्ध के चलते बुलंद शहर जा कर शाहदी कर ली ,समाज के ठेकेदारों ने उनके परिवार को गाँव से बहिस्कृत कर देय और ऋतू का उसकी माँ के सामने सामूहिक बलात्कार कर बेरहमी से हत्या कर शव को उत्तराखंड उ.प की सीमा पर एक खेत में फ्हेक देय ,
*मार्च में ही मुंबई पुलिस ने एक ६० साल के व्यापारी को अपनी बेटी के साथ बलात्कार करने के आरोप में गिरफ्तार क्या ,जिसमे बेटी की माँ भी शामिल थी ,उन्होंने कहा की ऐसा वे एक तांत्रिक के कहेने पर करते थे ,जिसे घर में तरकी होनी थी ,
*झारखण्ड में एक डोक्टर पिता को अपनी विज्ञानं की पड़ाई,कर रही बेटी का कई वर्षो तक योन -शोसन के आरोपी पिता को गिरफ्तार क्या ,
समाज मैं ऐसी अनगिनत घटनाये होती हैं जहा रक्षक ही भक्षक बनजाता है जो अपने आप में ये समाज का दुर्भाग्य पूर्ण पहलु है ,
इन् रीती-रिवाजों के चलते कई महिलाये ,माँ ,बहेन,बेटी ,अन्याय का खिलाफ आवाज़ नही उठाती ,
क्या ये रीती-रिवाज़ इस लिये बने है जो न्याय के रस्ते में रोड़े अटकाए ,?
मनुष्य विचारशील है जो उसको अन्य पशु ,जानवर ,से अलग करता है ,यदि अपनी विचारशीलता का उपयोग बंद करदे तो मनुष्य ,मनुष्य रूप में होकर भी पशु योनी में जी रहा है ,
जो विचारशील नही है वो अन्याय के खेलाफ़ मुह बंद केए है ...,
जिसे लेकर खाप-पंचायेतें बड़े उग्र रूप में देखती हैं ,ओर फरमान पे फरमान जारी करती हैं ,
अपने ही गाँव के किसी युवक -युवती से प्रेम सम्बन्ध होने पर पूरा का पूरा गाँव ओर खाप पन्चायेते उसके जान की दुश्मन बन जाती हैं ,प्रेम करना अपराध बना दिया जिसमें अनेक समस्याओ को झेलना पड़ता है ,ओर हत्या का शिकार होना पड़ता है ,
वही जो बाप अपनी ही बेटी का योन -शोषण ,बलात्कार करता है ,वो कई क़ानूनी बारीकियो का फायेदा उठा कर मुक्त भी हो जाता है ,शायद रीती -रिवाजों के ठेकेदारों को इससे कोई लाभ नही मेलेगा या यु कहे की ये उनके तानाशाही सोच के अंतर्गत नहीं आते ,क्यों की ये पहलु तो मानवता की सीमा को पर कर गया ओर मानवता की सीमा तो खाप-पन्चायेते भी पर कर जाती हैं भला अपने समान पहुचने वाले अपराध के खिलाफ कैसे आवाज़ उठा सकतें हैं ,
इन् ठेकेदारों का कार्य तो तानाशाही सोच के अंतर्गत आता है ,लड़कियां जिस्न्स ना पहेने ,मोबाईल फोन ना रखे ,वाय्ग्येरा -वाय्ग्येरा ...इस तानाशाही सोच के बहार के मुदो से उनका कोई सरोकार नही,
राष्टीय महिला आयोग और महिला संगठनों के अस्तित्व में आने से केवल महिलाओ के प्रति होते हत्याचार को नही रोका जा सकता ,इस के लिये समाज को अपनी मानसिकता को झंजोरना पड़ेगा ,अपने विचारो को उन्नत करना होगा ,अपने दुआर बनाये गए रीती -रिवाजों से ऊपर उठ कर मानवता की ,प्रेम की ,सन्हे की ,अहिंसा की बातो पर विचार करना होगा ,जो बेहद कठिन प्रतीत होता है ,क्यों की आज के समाज में लोगो को ये आदत हो चुकी है की कोई उन्हें बताये क्या करना है ,क्या नही ....जो अपने ऊपर एक ऐसे अधिकारी की कल्पना करते हैं ,जो उनका मार्गदर्शन करे ,क्यों की मानव की समाज में सोचने की ,विचार करने की षमता शिन हो गाई,
हैं ,उसमें सही गलत का फ्हेसला करने की प्रवति ख़त्म होती जा रही है ,
समाज मैं शमता हैं तो बस वो करने की जो उन्हें कोई बताये उन्हें क्या करना है ,खुद तो वे सोच -विचार करने में असमर्थ दिखतें हैं ,
समाज के दुर्भाग्येपूर्ण पहलु पर नज़र पड़ भी जाये तो कुछ समय तक उसकी चर्चा कर के भूल जाते हैं ,किन्तु कोई भी समाज का टेकेदार इन् पहलुओ को उस हद तक नहीं लेकर जाता जहाँ मानवता की सीमा को छु सके और उनके लिये सन्हें ,प्रेम ,दया ,सत्ये ,अहिंसा और कर्तव्य के दुवार खुले गे ,शायद उनको दुवार खोलने से डर लगता हैं क्योकि वे एक तानाशाही सोच के साथ जीते हैं ,जो ये तय करते हैं की समाज को क्या करना चाहेये ,क्या नहीं ...?
ये विचार करने का कार्य तानाशाही सोच वालो के पास नहीं है ,
*२००८ में उड़ीसा के मल्कनाग्री के कुद्मुलुग्राम गाँव में ३७ वर्षीय भगवन दाकु को अपनी १४ वर्षीय बेटी के साथ बलात्कार के आरोप में गिरफ्तार किया ,
*राजधानी दिल्ली के मंगोलपुरी इलाके में १४ वर्षीय ,सोतेली पुत्री के साथ बलात्कार किया ,राजेश कुमार को गिरफ्तार किया ,
*२० वर्षीय कॉलेज स्टुडेंट ने अपने पिता पर ८ वर्षो से योन -शोषण का आरोप लगाया,आरोपी पिता भाजपा इकाई के महासचिव अशोक को हर्दये की परेशानी और असमान्ये लगने के कारन अस्पताल दाखिल कराया ,
*फिलोरा -जालंदर में NIR पिता को १३ वर्षीय अपने बेटी के योन -शोषण के मामले में गिरफ्तार किया ,
*हरियाणा में सोनीपत जिले में एक पिता ने १४ वर्षीय बेटी के साथ डेड साल तक बलात्कार क्या ,
*केवड़ा गाँव के इन्द्रेश गुजर -ऋतू हरिजन प्रेम सम्बन्ध के चलते बुलंद शहर जा कर शाहदी कर ली ,समाज के ठेकेदारों ने उनके परिवार को गाँव से बहिस्कृत कर देय और ऋतू का उसकी माँ के सामने सामूहिक बलात्कार कर बेरहमी से हत्या कर शव को उत्तराखंड उ.प की सीमा पर एक खेत में फ्हेक देय ,
*मार्च में ही मुंबई पुलिस ने एक ६० साल के व्यापारी को अपनी बेटी के साथ बलात्कार करने के आरोप में गिरफ्तार क्या ,जिसमे बेटी की माँ भी शामिल थी ,उन्होंने कहा की ऐसा वे एक तांत्रिक के कहेने पर करते थे ,जिसे घर में तरकी होनी थी ,
*झारखण्ड में एक डोक्टर पिता को अपनी विज्ञानं की पड़ाई,कर रही बेटी का कई वर्षो तक योन -शोसन के आरोपी पिता को गिरफ्तार क्या ,
समाज मैं ऐसी अनगिनत घटनाये होती हैं जहा रक्षक ही भक्षक बनजाता है जो अपने आप में ये समाज का दुर्भाग्य पूर्ण पहलु है ,
इन् रीती-रिवाजों के चलते कई महिलाये ,माँ ,बहेन,बेटी ,अन्याय का खिलाफ आवाज़ नही उठाती ,
क्या ये रीती-रिवाज़ इस लिये बने है जो न्याय के रस्ते में रोड़े अटकाए ,?
मनुष्य विचारशील है जो उसको अन्य पशु ,जानवर ,से अलग करता है ,यदि अपनी विचारशीलता का उपयोग बंद करदे तो मनुष्य ,मनुष्य रूप में होकर भी पशु योनी में जी रहा है ,
जो विचारशील नही है वो अन्याय के खेलाफ़ मुह बंद केए है ...,
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