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Wednesday, September 4, 2013

कभी 84 कोसी

 कभी  84 कोसी
 कभी   अयोध्या  वासी
 कभी राम मंदिर 
कभी अखाडा बना 
कभी सवाल बना 
कभी पुकार बना 
कभी बना कभी मिटा 
ऐसा इतिहास बना 
दोराहतें हैं कुछ तत्व इसे 
कभी हक के नाम पर 
कभी अल्लहा के नाम पर 
तो कभी राम के नाम पर 
जब जब ये सिलसिला चला 
मानो  लाखों  का खून बहा
और कितनी बलि चढाओगे 
कभी किसी के नाम पर 
कभी किसी के नाम पर 
कभी सन्नाटा तो कभी शोर बना 
होश में आ जाओ,
ईश्वर भी अब रोने लगा 
पछताने लगा 
कभी सोचने लगा 
क्यों मैंने अपना प्रतिबिम्ब  गढ़ा 
खाली  था संसार फिर क्यों मैंने इसे भरा 
कभी आत्मा का 
कभी परमात्मा का था सम्बंध 
आज क्यों पत्थरों में बदला 
क्यों मैं कभी ईश्वर  बना 
कभी मैं बना पत्थर 
कभी इंसान  भी बना पत्थर 

Thursday, August 22, 2013

धार्मिक भावना वो थी जो सिता ने दी

 धार्मिक भावना वो थी जो सिता ने दी


आसाराम संत पर एक नाबालिग के यौन शोषण का आरोप लगा है , जिसकी आई.एफ.आर भी र्दज हो गयी और वह पीड़ित बच्ची भी उपस्थित है , धारा – ३७६,३४२,५०६ लगाई गयी फिर भी अभी तक आसाराम को गिरफ्तार नहीं किया गया ...आखिर क्यों..? यदि कोई ड्राक्ट्रर , पुलिस , राजनेता , अध्यापक , अफ्सर आदि पर ये आरोप लगे होते तो वे कब के गिरफ्तार किए जा चुके होते ...किन्तु क्योंकि आसाराम एक संत है , तो उनका मामला धार्मिक भावना से जुड़ा हुआ है ...पुलिस को भय है उनके उन तमाम अनुयायियों का जो बवाल कर सकतें है ... वाह !  क्या खूब है बल्कि वे सच्चे अनुयायी है तो अपने आप से सहयोग करना चाहिए, आसाराम को आगे आकर उनसे बवाल ना करने को कहना चाहिए , उन पर लगा आरोप सच हैं या झूठ इसका फैसला कानून कर लेगा ...किन्तु एक संत को अपने संत होने का प्रमाण देने की अवश्कता ना हो किन्तु कथनी और करनी में फर्क नहीं होना चाहिए... वे ये जानते होंगें कि सच की हमेशा जीत होती हैं..,फिर यदि उन पर आरोप है तो पूर्ण जाँच कराना उनका धर्म है ...जैसे सिता मईयां ने अपने उपर लगें आरोपों को दूर करने के लिए अग्नि परिक्षा दी और राम जी ने भी ये विश्वास करतें हुए कि सिता सत्य है फिर भी केवल समाज के लिए समाज कि नजरों के सामनें उनको अग्नि परिक्षा देने से नहीं रोका ...कुछ ऐसा ही उदहारण आज आसाराम को गिरफ्तार होकर शान्तिपूर्ण ढ़गं से देना चाहिए ...धार्मिक भावना वो थी जो सिता ने दी ...ये नहीं जो आज धार्मिक भावना के भय से कोई अग्नि परिक्षा ना दें ...

Wednesday, August 21, 2013

आबरू

आबरू



एक के साथ एक मुफ्त है,
स्त्री का जन्म सुस्त है ,

नारी की गाथा गाता ,
नारी के सम्मान में , ये शब्द

मुछों का सवाल ,ये शब्द
जात – पात की मशॅाल , ये शब्द
नारी का साथ  है , ये शब्द
उसका हाल है , ये शब्द


नारी को सम्मान से ,
सामान करता , ये शब्द
ना सात फेरे अग्नि के , ना डौली कि स्वारी ,
फिर भी उसका जीवनसाथी , ये शब्द ,


समाज ने ये खेल खेला
इस शब्द का जाल फेंका ,
आबरू शब्द ये मिला ,
आबरू आबरू का गान

स्त्री का जन्म सुस्त है ,

एक के साथ एक मुफ्त है

स्त्री का जन्म सुस्त है ,

Wednesday, July 31, 2013

 एकता में भिन्ता



जिंदगी गुजरते जा रही है 
पर वक़्त ठहर  गया 

सिमटा  सा एक पल 
भवर बन गया 

जीवन की कश्ती डूबती जा रही 
 पर   बस्ती की आबादी आबाद हो रही 

कहने को लोग बस्तें हैं 
पर बिखराव के चिन्ह दीखते हैं 

 दिलो से दूर होतें लोगो का 
जिस्मो का साथ हुआ 

 सभ्यता , संस्कृति का पड़ाव पर कर 
 आधुनिकता का  उदय हुआ 

सब राग झूठे लगे 
जब रिमिक्स  का प्रचार हुआ 


होली ,दिवाली ,ईद सभी कम पड़े 
पर अब वेलेन्टाईन , freinshipday  का  ईजाद हुआ 


पहले सब का एक दिन था 
अब सबके लिये एक एक दिन हुआ 

एक स्वर  गूंजता था 
भिन्ता में एकता ,

 पर अब एकता में भिन्ता हुआ 










Tuesday, July 30, 2013






 साथी

चेहरा    जो कोई   ओझल हो गया 
ओड़  कर ओडनी  उसका साथी भी सो गया 

निर्जीव  सा रहा वो जीवधारियों में 
एक के बाद एक उस पर सितम हो गया 

कुछ कमी थी कभी  , अब कुछ भी नहीं रहा 
ये बस कुछ से कुछ तक का सफ़र बहुत भारी रहा 

एक एक पहर विनाशकारी रहा 
पतवार छोड़ पतवारी  न रहा 
फिर भी कश्ती का सफ़र लहेरो पर जारी रहा