वो चूं चूं की आवाज़
सवेरे जगाती थी मुझे और कितना कोसती थी मैं उसे
दोफहरी को गली में बैठे बिजली के तारों पर
वो चूं चूं की आवाज़
बाल्कनी का दरवाजा गलती से खुला नहीं
की वो चूं चूं बस अन्दर घुसी नहीं
ओह भगवान अरे कोई जल्दी से पंखा बन्द करो
कोई इसे बहार निकालो
जिना हराम कर दिया है
इस चूं चूं ने
इधर – उधर फुदकती सी फिरती थी
वो चूं चूं की अवाज
शाम को जो घर के पिछे पेड़ पर जमा होती थी
मानो अपनी सखियों से दिन भर दूरी के
बाद
उन्हे पुकारती थी
वो चूं चूं की आवाज
दिन भर की हिटोली से थक गई हैं
चलो सखियों कल सवेरें
फिर करनी है अपने मन की
लोगों के जगनें से पहले जगना है हमें
तो इनसे पहले सोना है हमें
वो चूं चूं की आवाज़
जाने कहां गुम हो चली
फिरती थी बेपरवहा जाने कहां चली
कर के हमे उदास जाने कहां गुम हो चली
वो चूं चूं की अवाज
कि काश कहीं से आ जाए वो चूं चूं
फिर से मुझे जगा जाए वो चूं चूं
काश फिर से मेरे कमरे में घुस जाए वो चूं चूं
काश की फिर से मेरी छत पर वो चूं चूं
बरीश के पानी में नाहें वो
काश फिर से लौट आए वो अपनी टोली में
वो चूं चूं की अवाज
फिर से गुंज पड़े मेरी गली में
वो चूं चूं की अवाज
मेरी गोरईया की
वो चूं चूं की अवाज
मेरी गोरईया की
NICE .WORLD'S WOMAN BLOGGERS ASSOCIATION-JOIN THIS NOW
ReplyDelete