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Thursday, December 16, 2010

जोकर

जोकर


किसी ने कहा ,
हम जोकर हैं ,
हमने कहा चलो ,

जोकर ही सही ,
जोकर बन किसी को हँसा तो जातें हैं ,
उन का क्या जो आचे बन कर ,
आखो में पानी दे जातें हैं ,
और कुछ कमी रहे जाये ,
तो तनहा छोड़ जातें हैं ,
और तभी खुद को अच्छा बतलातें हैं ,
ऐसी तकदीर पर अफ़सोस होता है  ,
जो अच्छे होकर भी गुन्हा करते हैं ,
इतने गुणकारी होकर भी एक मुस्कान भी नही बाटते,
तो हम जैसे आम लोग जोकर बन जाते हैं ,

मंजिल

मंजिल

नए रस्ते की चाहत में ,
अपनी मंजिल की ओर बड़ते कदम ,
रोज़ एक रस्ते पे चलते हैं ,
जिस से रिश्ता बन चला ,
रोज़ मिलते इस डगर से ,
कुछ हो चला ,
रखते थे कभी चाहत मंजिल की ,
इन् रास्तो पर चलते ,
आज इन् से ही इश्क हो चला ,
क्या देगी अब मंजिल हमे शकु,
अब तो इन् रहो ने राहत देना शुरू कर दिया ,
मंजिल की चाहत से भटका कर ,
इन् रहो ने ठग लिया ,
कहेते थे जिसे इश्क उसने ,हमे भी लुट  लिया ,