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Thursday, July 21, 2011

नारी के प्रति क्या समाज ...?

नारी के प्रति क्या समाज  ...?
 
यु तो आज सभी दिशाओ में नारी का परचम भी खूब लेहैराने लगा है ...सरकार की कोशिश भी नारी की दशा को लेकर गंभीर विषय बनी है ...समाज में होते बदलाव नारी के बदलाव के बिना पूर्ण रूप से संभव नही हो सकते ...जिस तरह भारतीय शाश्त्रो में पुरुष और स्त्री  को परिवार की बेहतरी के लिये दोनों को रथ के दो पहियों की उपमा दे कर इंगित क्या गया जिस से  दोनों का परिवार में बराबर का सहियोग बयां होता है ...किन्तु  वंही जब "श्री कृष्ण" अर्जुन को गीता में जब उपदेश देते हैं तो स्पष्टाः एक जगह स्त्री की उपमा कुछ इस प्रकार करते है जहा स्त्री - पुरुष की बराबरी के सिधांत को कुछ भंग ही कर देतें हैं ...श्री कृष्ण गीता में एक जगह अर्जुन को अपनी इन्द्रियों को वश में रखने की विधा देते हैं 
और कुछ यु ...." गीता में श्री कृष्ण कहते हैं - हे अर्जुन ! आसक्ति का नाश न होने के कारण ये प्रथमन स्वभाव वाली इन्द्रियां यतन करने पर भी बुद्धिमान पुरुष के मन को हर लेती हैं ..मन से इन्द्रियां बलवान दिखती हैं ...क्योकि जैसे जल में नाव को वायु हर लेती हैं ...वैसे ही विषयों में विचरने वाली इन्द्रियों से मन जिस इन्द्रिय से साथ करता है , वह एक ही इन्द्रिय इस आयुक्त पुरुष की बुधि को हर लेती है , इस लिये मन से बुधि बलवान है ..,कमजोर पुरुष को स्त्री अपने इशारो पर नचाती है ...वह वश में पूर्णतया स्त्री के हो जाता है ..जबकि पुरुष स्त्री से बलवान है ..,ठीक इसी प्रकार जिनकी इन्द्रियां वश में न होकर मन को वश में किये हुए हैं ...,
प्रभु से प्राथना करनी चाहिए - हे भगवान ...आप दया करके मुझे सहायता दे ,,,जिस से  इन्द्रियां , मन  एव बुधि  मेरे वश में हो जाए
    
    भारतीय - शास्त्रो में इतने विरोदाभास दीखते हैं की जिनको गिना नही जा सकता .....यहाँ केवल पुरुष को समाज का उच्च प्राणी दिखा  दिया है और स्त्री को एक दोयम दर्ज़े का ... और वही " बुद्धिमान  पुरुष "  कहेकर भी ये देखा दिया  की स्त्री बुद्धिमान की कातर से बहार है ...मुझे लगता है जहाँ बुद्धिमान  पुरुष  कहा गया वहां मानव ,..प्राणी.,मनुष्य .., जीव..,ऐसे अनेक शब्द हैं जो दोनों को   अपने में समाहित करते ..पर जब शास्त्रों में ये विरोधाभास रहेगा जहाँ जब मन करा स्त्री को पुरुष के साथ बराबरी का दर्जा देदिया जब मन करा जब स्त्री को पीछे कर दोयम दर्ज़े का बयां कर दिया ..केवल पुरुष के सुख के लिये...सारे शास्त्र " पुरुष सुख "को " केंद्र " में रख कर बनाये गए हैं ....और आज की राजनीती भी भारतीय शास्त्रों से प्रभावित दिखती है जब मन चाह स्त्री को बराबरी का दर्जा दे दिया जब कुछ हित आहात होते दिखे तो स्त्री को पीछे कर दिया
 
 जहाँ  पंचायती व्यवस्ता में ५०% रिज़र्वेशन  प्राप्त है वही ...संसद में ३३% रिज़र्वेशन का बिल का मुदा  बहस का विषय बना है ...शायद इसलिए क्यों की पंचायती स्तर पर कुछ घरेलु महिलाये पद पर आती हैं जिनके पीछे उनके पतियों का या उनके घर के पुरुष सदस्य का हुक्म चलता है वो केवल चुनाव जितने का मात्र जरिया कही जा सकती है या राजनीती की कम समझ का दोष कहेकर भी परदे के पीछे से किसी और का हुक्म चलता है  ...वही जो पुरुष संसंध में ३३% रिज़र्वेशन के विरोध में दिखता है क्यों की जो स्त्री संसद में स्थान पाती है वो बड़े तबके की राजनीती समझ रखती है और खुद पर किसी का बस नही चलने देती अपने निर्णय खुद से लेती है ....ये ऐसी चीज़े हैं जो पुरुष वादी सोच वाले लोगो को पसंद नही आती ....कही उनका पुरुषवादी समाज जो आज चोटिल होने लगा गा है ...कही ख़तम न हो जाए ..शायद ये ही दर इस सोच की परवर्ती वाले लोगो को डराता होगा ...जो तबका सदियों से शोषित होता आ रहा है उसको ..कुछ ऐसा जैक तो आवश्य प्राप्त होना चाहिए ....जो उनको बराबरी के स्तर पर ला सके  .... शास्त्रों में बुद्धिमान पुरुष सुन कर गोरान्वित होने वाले पुरषों को सच में बुद्धिमता का प्रयोग कर मानवता वादी सिधांत को अपनाने की कोशिश करनी चाहिए ताकि आने वाला समाज बराबरी का समाज हो स्त्री को भी पुरुष के सामान जीव , मनुष्य ..मानव  ..समजा जाए ...जो शास्त्र कभी केवल पुरुष सुख को केंद्र में रख कर लिखे गए और शुद्ध रूप को प्रभावित क्या गया होगा उनपर विचार करने  की जरुरत है ....

1 comment:

  1. I accept above words but I want to lighten on few sentences
    Kindly never go with Ramanand Sagar’s TV serial Sri Krishna Bhagavad Gita, they show baseless examples, in real if you read Gita, it starts from Senses (indriya) to Chariot (rath) only & nothing mention more than that. In TV serial they have indulging hypothetical thoughts which are baseless.
    Unfortunately most of the people are not able to understand the real meaning of Gita. They have heard from someone & imagination in reverse. If you want to wrap up the Gita in one sentence: “The knowledge to know yourself”
    About shastra’s, it is edited & modify in every generation, so they are not reliable.
    Most of the scripture were written by men,so it is obvious that they want to praise themselves.
    Anyways I accept the above words about unbalance in gender. If you have dig in depth of history you realize that in Ancient history everyone has their own dignity & powers. When we move to Medieval history, king ruling system started & unbalanced equality started. The king Manu was the first to start the caste system to better function the society but later on his son-in-law king Daksha was amplifies the system & imposed the restrictions on the caste & gender. (sati’s father, the origin of sati pratha) kings always wanted to show up their power by any means, if anyone wants to show up, they do mistakes & these mistakes carry over from one generation to another.
    If you have read the restricted texts the you find that even good kings were adopt their ancestor's laws. for example king Ram was ordered to hanged the dalit man when he enter into the temple, king does not want to do so, but he binds with the laws. So laws are playing crucial role.
    In western & Europe, in those days Church controls all the power & they restricted the powers for women & ordered to kill the women whose thoughts are free minded. Most of the People were accepted, they thought it’s the God order, but in real church wants the power. The only people who oppose were the kings of Europe & even though most of the people were opposed, they took their army & captured the church members and free all the women & give equal powers. The word Romanticism origins, the real meaning is “even though society opposes, you have to do the right thing’ but after Shakespeare the real meaning lost its original direction.
    Still we have to walk many more years to balance the society & laws in our country.

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