कितना कुछ चाहत होती कभी
पर कभी ऐसे ही खयालो में गुम हो जाती
कभी कुछ बातो को शब्द नहीं
तो कभी कुछ कविताओं को मेरी रजामंदी नहीं
आज भी अधूरी सी रीनाकारी
जाने उसे कुछ पहचान क्यों नहीं मिलती
पर कभी ऐसे ही खयालो में गुम हो जाती
कभी कुछ बातो को शब्द नहीं
तो कभी कुछ कविताओं को मेरी रजामंदी नहीं
आज भी अधूरी सी रीनाकारी
जाने उसे कुछ पहचान क्यों नहीं मिलती
जाने उसे कुछ मुकाम क्यों नहीं मिलता