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Monday, July 25, 2011

मैं बदल गया






काश में कल जैसा था वैसा न होता
इतना जिंदादिल न होता
आज फिर लोग ये न कहते की मैं बदल गया
काश की कल इतनी बरसात न हुई होती
तो लोग ये न कहते की सुखा पड़ गया

Friday, July 22, 2011

क्यों की अपूर्ण होना ही खुबसूरत है





 
 
 
 
 
 
मैं भी कभी कभी उदास हो जाता हूँ
सब को रौशनी से रोशन   करता
मैं भी कभी कभी हताश हो जाता हूँ
जाने क्यों मैं भी कभी मजबूर हो जाता  हूँ
मेरी भी सीमा है कही पहुँच नहीं पाता हूँ
लाख जतन करू हार जाता हूँ
अपने आप पर कभी मैं भी हेरान होता हूँ
जिसके जैसा सब बनना चाहए
मैं कभी कभी खुद को अधुरा पाता हूँ
ऐसा क्यों होता है हर कोई अधुरा है
दिखे जो पूर्ण वो भी कही अपूर्ण है
शायद अपूर्ण होना ही खुबसूरत है
वरना खुद के बारे में कोन सोचता
सब को अचम्भित करता इतराता
और किसी की तारीफ का कहाँ जिक्र बन पाता
लोगो की पसंद से दूर होता
खुद में खोया अहम् में चूर होता
फिर कहा और बहेतर बनने का मन होता
कोई है इसके होने  का एसास कहा होता
सबकी दुआओं का होना कहाँ होता मेरे साथ
मेरी रौशनी से भी कोई और रौशनी है
जो मेरी सीमा के पार है
लाख जतन कर हार जाता हूँ
वहां  नही जा  पाता हूँ
वहां पर बसे मुल्क को भी रोशन करती कोई रौशनी है
मेरे बिना भी चल सके संसार ऐसी रौशनी का होना भी है
कोई ऐसी शक्ति है जो सबको खुबसूरत रखती है
अपूर्णता में पूर्णता करती है
उसकी कुदरत में कुछ पूर्ण नही
क्यों की अपूर्ण होना ही खुबसूरत है
आज मैं नतमस्तक हूँ उसका क्यों की मैं भी अपूर्ण हूँ और खुबसूरत हूँ

Thursday, July 21, 2011

गुलाब - ए - गुलाब

गुलाब लिये हाथो में सच्ची मोहोबत की बात क्या कीजिये जब ....
" गुलाब - ए- दोर " भी बदल गए... जब ..न   मोहोबत - ए- इश्क   रहा  न ना  "  गुलाब - ए - गुलाब "  रहा ...आने लगे हैं गुलाब भी " दोर - ए - बदल कर"  जैसे आने लगी है .." मोहोबत - ए- दोर बदल कर "  ...कल ही मिला कोई  गुलाब  आज  तलक  न  सुखा  है ..किसी किताब में रखु उसको पर उसको वक़्त ही कहाँ मिला मुरझाने का ...क्यों की  गुलाब - ए -दोर बदल गया है ..."गुलाब -ए - कागज़"  में ...और बद्किस्मतो को देखो ढूंढ़ रहे हैं खुशबु आज भी "कागज़ -ए- गुलाब" में...,

नारी के प्रति क्या समाज ...?

नारी के प्रति क्या समाज  ...?
 
यु तो आज सभी दिशाओ में नारी का परचम भी खूब लेहैराने लगा है ...सरकार की कोशिश भी नारी की दशा को लेकर गंभीर विषय बनी है ...समाज में होते बदलाव नारी के बदलाव के बिना पूर्ण रूप से संभव नही हो सकते ...जिस तरह भारतीय शाश्त्रो में पुरुष और स्त्री  को परिवार की बेहतरी के लिये दोनों को रथ के दो पहियों की उपमा दे कर इंगित क्या गया जिस से  दोनों का परिवार में बराबर का सहियोग बयां होता है ...किन्तु  वंही जब "श्री कृष्ण" अर्जुन को गीता में जब उपदेश देते हैं तो स्पष्टाः एक जगह स्त्री की उपमा कुछ इस प्रकार करते है जहा स्त्री - पुरुष की बराबरी के सिधांत को कुछ भंग ही कर देतें हैं ...श्री कृष्ण गीता में एक जगह अर्जुन को अपनी इन्द्रियों को वश में रखने की विधा देते हैं 
और कुछ यु ...." गीता में श्री कृष्ण कहते हैं - हे अर्जुन ! आसक्ति का नाश न होने के कारण ये प्रथमन स्वभाव वाली इन्द्रियां यतन करने पर भी बुद्धिमान पुरुष के मन को हर लेती हैं ..मन से इन्द्रियां बलवान दिखती हैं ...क्योकि जैसे जल में नाव को वायु हर लेती हैं ...वैसे ही विषयों में विचरने वाली इन्द्रियों से मन जिस इन्द्रिय से साथ करता है , वह एक ही इन्द्रिय इस आयुक्त पुरुष की बुधि को हर लेती है , इस लिये मन से बुधि बलवान है ..,कमजोर पुरुष को स्त्री अपने इशारो पर नचाती है ...वह वश में पूर्णतया स्त्री के हो जाता है ..जबकि पुरुष स्त्री से बलवान है ..,ठीक इसी प्रकार जिनकी इन्द्रियां वश में न होकर मन को वश में किये हुए हैं ...,
प्रभु से प्राथना करनी चाहिए - हे भगवान ...आप दया करके मुझे सहायता दे ,,,जिस से  इन्द्रियां , मन  एव बुधि  मेरे वश में हो जाए
    
    भारतीय - शास्त्रो में इतने विरोदाभास दीखते हैं की जिनको गिना नही जा सकता .....यहाँ केवल पुरुष को समाज का उच्च प्राणी दिखा  दिया है और स्त्री को एक दोयम दर्ज़े का ... और वही " बुद्धिमान  पुरुष "  कहेकर भी ये देखा दिया  की स्त्री बुद्धिमान की कातर से बहार है ...मुझे लगता है जहाँ बुद्धिमान  पुरुष  कहा गया वहां मानव ,..प्राणी.,मनुष्य .., जीव..,ऐसे अनेक शब्द हैं जो दोनों को   अपने में समाहित करते ..पर जब शास्त्रों में ये विरोधाभास रहेगा जहाँ जब मन करा स्त्री को पुरुष के साथ बराबरी का दर्जा देदिया जब मन करा जब स्त्री को पीछे कर दोयम दर्ज़े का बयां कर दिया ..केवल पुरुष के सुख के लिये...सारे शास्त्र " पुरुष सुख "को " केंद्र " में रख कर बनाये गए हैं ....और आज की राजनीती भी भारतीय शास्त्रों से प्रभावित दिखती है जब मन चाह स्त्री को बराबरी का दर्जा दे दिया जब कुछ हित आहात होते दिखे तो स्त्री को पीछे कर दिया
 
 जहाँ  पंचायती व्यवस्ता में ५०% रिज़र्वेशन  प्राप्त है वही ...संसद में ३३% रिज़र्वेशन का बिल का मुदा  बहस का विषय बना है ...शायद इसलिए क्यों की पंचायती स्तर पर कुछ घरेलु महिलाये पद पर आती हैं जिनके पीछे उनके पतियों का या उनके घर के पुरुष सदस्य का हुक्म चलता है वो केवल चुनाव जितने का मात्र जरिया कही जा सकती है या राजनीती की कम समझ का दोष कहेकर भी परदे के पीछे से किसी और का हुक्म चलता है  ...वही जो पुरुष संसंध में ३३% रिज़र्वेशन के विरोध में दिखता है क्यों की जो स्त्री संसद में स्थान पाती है वो बड़े तबके की राजनीती समझ रखती है और खुद पर किसी का बस नही चलने देती अपने निर्णय खुद से लेती है ....ये ऐसी चीज़े हैं जो पुरुष वादी सोच वाले लोगो को पसंद नही आती ....कही उनका पुरुषवादी समाज जो आज चोटिल होने लगा गा है ...कही ख़तम न हो जाए ..शायद ये ही दर इस सोच की परवर्ती वाले लोगो को डराता होगा ...जो तबका सदियों से शोषित होता आ रहा है उसको ..कुछ ऐसा जैक तो आवश्य प्राप्त होना चाहिए ....जो उनको बराबरी के स्तर पर ला सके  .... शास्त्रों में बुद्धिमान पुरुष सुन कर गोरान्वित होने वाले पुरषों को सच में बुद्धिमता का प्रयोग कर मानवता वादी सिधांत को अपनाने की कोशिश करनी चाहिए ताकि आने वाला समाज बराबरी का समाज हो स्त्री को भी पुरुष के सामान जीव , मनुष्य ..मानव  ..समजा जाए ...जो शास्त्र कभी केवल पुरुष सुख को केंद्र में रख कर लिखे गए और शुद्ध रूप को प्रभावित क्या गया होगा उनपर विचार करने  की जरुरत है ....