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Sunday, June 26, 2011






ये रीनाकारी पंख खोलने को बेताब है

सातवे आसमा के पार जाने को चाहत है

कोई ऐसा स्थान नहीं दिखता 

जहाँ से एक ऊडान भरू

और मेरे सपनो के शहर में जाऊ

दिवार कोई खड़ी है चारो तरफ मेरे

उससे घिरी मेरी आशाहये

सिमट रही है हेरानी से

खवाब जो दिखाती  थी कल दुनिया

आज लगी है उनका वजूद मिटाने में

आज लाडू किसे से मैं


जब सामने खड़े है मेरे ही अपने

जिनकी खातिर बनी रीनाकारी

आज वही कुछ खफा हैं हमसे



Sunday, June 12, 2011

तेरी चाहत बस इस चाहत को जिंदा रखना ...




उनका यू दूर जाना हुआ और हमसे ये कहेना हुआ...

की जा तो रहे हैं हम जानेमन पर यू दिल कही लगा मत लेना.. ,

है मोहोबात  बेहद तुमसे सनम ...

कुछ समय के लिये ही सही पर इस दिल में किसी को  मेरे सिवा जगह मत देना... 

लौटना है एक दिन वापस  तेरे पास ...

मेरी जगह मेरी ही रखना ...

हर पल ना सही याद मत करना पर अपनी सासों में मेरा नाम लिखना... 

आता हूँ आसमा से चांद तोड़ कर ...

कल फिर अपने वादे से मुकर मत जाना ...

है भरोसा मुझ पर... 

जिसे मुझ पर बनाये रखना ...

है तेरी चाहत बस इस चाहत को जिंदा रखना ...

Sunday, June 5, 2011

चोटिल कर रहा है कोई !!!

मेरे  लोकतंत्र में क्या हो रहा है ...कोई किसी तरह तो कोई किसी तरह इसे चोटिल कर रहा है कोई  कितनी जोर से इस पर  चोट कर रहा है.., यह तय करना बेहद मुश्किल है ...,बाबा राम देव की अधूरी समझ का दोष कहे या सरकार की अपनी जान बचाने की कोशिश या जिन लोगो का करोड़ो का धन स्विज़ बैंक में विदेशो में है उनके कारण लोकतंत्र चोटिल हो रहा है या जो लोग वोट के अधिकार का सही  इस्तमाल नही करते या जो अधिकारी लोकसेवा के नाम पर अपने परिवार की सेवा करते हैं ...,किसे दोष दे ????





''हर एक दोषी दिखता मेरे देश के शहीदों की क़ुरबानी का मजाक उडाता लगता  है ,
मेरे वतन पे जो कल मिटे उनकी मज़ारों पर मेले लगाता लगता है ,
किस से कोई दुवा करू या कोई न्याय की फरीयाद करू अब तो न्याय पालिका के न्यायाधीश भी कुछ रुसवा लगते हैं ,
मेरे लोकतंत्र को कोन सम्भालेगा जब सम्भालने वाले ही सम्भल ना पा रहे  हो "


क्या फिर से कोई भगत सिंह ,देस गुरु ,सुख देव ,लाला लाजपत जैसे देश भगतो का अवतार जन्म हो पायेगा !!!
क्या फिर से देश भगती के गीतों का राग गुनगुनाएगा !!!
क्या फिर से कोई मेरी भारत माता को भ्रष्टाचार की बेड़ियों से आजाद करा पायेगा !!!
इस बार कुछ अलग है पहले विदेशी थे दुश्मन आज देशी ही लगे है  देश को लुटने में मेरे अपने ही लगे हैं ...