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Thursday, May 29, 2025

Dil ka pathar

 By reenskari

दिल का पत्थर होना

तूने दिल भी तोड़ा, पर असर न हुआ,

क्या मेरा दिल इतना पत्थर हो गया?

मैंने तो समझा था काँच के जैसा,

चूरे-चूरे किसी को लग न जाए.

ऐसा होता तो तुझ पर असर होता,

तू तो बेअसर है.

खुद को समझने की कशमकश

इतनी उम्र गुज़ार दी मैंने, खुद को मैं समझा नहीं,

चल यार, तू बता, तूने खुद को समझा, तू क्या हो गया?

ये क्या ड्रामा है, 'खुद को समझो, खुद को समझो',

आख़िर क्यों समझना है?

होने दो न जैसा होता है,

कौन सा अमर हैं यहाँ?

आना-जाना यही रहेगा,

अगला-पिछला किसको याद नहीं,

कर्मों का खेल है, याददाश्त तो है नहीं.

जीवन का प्रवाह

कुछ याद भी रहे, यहाँ का यहीं रह जाएगा फिर,

जो चल रहा है, चलने दे.

क्या मुसीबत है एक-दूसरे को भला-बुरा कहने की?

क्या ज़रूरत है किसी को नीचे गिराने की?

हल्का-हल्का भी सही, पर कुछ तो सही होने दे.

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