मैं भी कभी कभी उदास हो जाता हूँ
सब को रौशनी से रोशन करता
मैं भी कभी कभी हताश हो जाता हूँ
जाने क्यों मैं भी कभी मजबूर हो जाता हूँ
मेरी भी सीमा है कही पहुँच नहीं पाता हूँ
लाख जतन करू हार जाता हूँ
अपने आप पर कभी मैं भी हेरान होता हूँ
जिसके जैसा सब बनना चाहए
मैं कभी कभी खुद को अधुरा पाता हूँ
ऐसा क्यों होता है हर कोई अधुरा है
दिखे जो पूर्ण वो भी कही अपूर्ण है
शायद अपूर्ण होना ही खुबसूरत है
वरना खुद के बारे में कोन सोचता
सब को अचम्भित करता इतराता
और किसी की तारीफ का कहाँ जिक्र बन पाता
लोगो की पसंद से दूर होता
खुद में खोया अहम् में चूर होता
फिर कहा और बहेतर बनने का मन होता
कोई है इसके होने का एसास कहा होता
सबकी दुआओं का होना कहाँ होता मेरे साथ
मेरी रौशनी से भी कोई और रौशनी है
जो मेरी सीमा के पार है
लाख जतन कर हार जाता हूँ
वहां नही जा पाता हूँ
वहां पर बसे मुल्क को भी रोशन करती कोई रौशनी है
मेरे बिना भी चल सके संसार ऐसी रौशनी का होना भी है
कोई ऐसी शक्ति है जो सबको खुबसूरत रखती है
अपूर्णता में पूर्णता करती है
उसकी कुदरत में कुछ पूर्ण नही
क्यों की अपूर्ण होना ही खुबसूरत है
आज मैं नतमस्तक हूँ उसका क्यों की मैं भी अपूर्ण हूँ और खुबसूरत हूँ
वाह।
ReplyDeleteअच्छा अहसास।
लिखते रहो लगातार..........
शुभकामनाएं......................
thanx atul ji
ReplyDeleteबहुत सुन्दर एवं मर्मस्पर्शी रचना !
ReplyDeleteहार्दिक शुभकामनायें !