आज भी क्यों इतनी तन्हाई लग रही है
साथ है कोई फिर भी साथ ढूंड रही हूँ
मुझे पाना चाहता है कोई ...
और मैं फिर भी खोना चाहती हूँ ..
मिलकर चलना था साथ उसको मेरे
फिर क्यों कुछ वक़्त तन्हा है साथ मेरे ...
मेरे साथ होकर भी ...
उसका मन ..मेरे मन सा क्यों नही ..
है अपना वो फिर भी समझता नही ..
जरूरत है आज उसकी और उसके पास वक़त नही ..
साथ है कोई और साथ नही ..
साथ है कोई फिर भी साथ ढूंड रही हूँ
मुझे पाना चाहता है कोई ...
और मैं फिर भी खोना चाहती हूँ ..
मिलकर चलना था साथ उसको मेरे
फिर क्यों कुछ वक़्त तन्हा है साथ मेरे ...
मेरे साथ होकर भी ...
उसका मन ..मेरे मन सा क्यों नही ..
है अपना वो फिर भी समझता नही ..
जरूरत है आज उसकी और उसके पास वक़त नही ..
साथ है कोई और साथ नही ..
good one dear...
ReplyDeletethanx
ReplyDeleteइसी का नाम जिंदगी है।
ReplyDeleteबहुत ही सुंदर....लाजवाब।
ReplyDeleteसंजय भास्कर
आदत....मुस्कुराने की
पर आपका स्वागत है
http://sanjaybhaskar.blogspot.com