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Sunday, September 4, 2011

coffee हाउस और दोस्तों का जमावड़ा

आज फिर coffee हाउस और दोस्तों का जमावड़ा हुआ
वही हो हाला और टांग खिचाई हुआ
मोज मस्ती का दोर फिर ख़तम भी हुआ
शांत पड़ा रास्ता फिर तय हुआ
और सोमवार को एतराज हुआ
जल्दी जल्दी की धुन फिर कानो में गूंजी
सुबहा की चाय फिर भुली
जस -तस और अपने काम पर जाना हुआ
मंगलवार तक सब मंगल हुआ
भुलाई यादें इस इतवार की
फिर काम का मुड हुआ
ब्रहस्पतिवार पर कार्य योजनाओ का विस्तार हुआ
शुक्रवार को शुक्र है रिजल्ट अच्हा हुआ
शनिवार को coffee हाउस की यादों की खुशबु आई
फिर इतवार का इतजार हुआ
इतवार को एतबार हुआ
आज छुटी है फिर दिल गार्डन गार्डन ...
दोस्ती यारी की पारी अभी बाकि है
एक कप कोफ़ी अभी बाकि है ...

3 comments:

  1. बहुत अच्‍छा।
    अच्‍छी यादें.....
    हमने तो काफी पी भी नहीं अब तक....
    एक क्‍या हमारी तो पूरी काफी बाकी है अभी.....

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  2. बेहतरीन शब्द संजोये है

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