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Thursday, March 10, 2011

जैसे चाँद से चांदनी रूठ कर चले

  

आजाता  है  जीकर  उनका   हर बार कुछ इस तरहां ,
 उनका जीकर भी ना करू ,आजाता  है  जीकर  उनका   हर बार कुछ इस तरहां ,
 वो कहते  हैं हमारी बाते ना करो ,आ जाती हैं उनकी बाते हर बार कुछ इस तरहां ,
 वो हम से रूट कर दूर निकल चले ,आ जाते हैं फिर हर बस साथ हमारे कुछ इस तरहां ,
 जैसे चाँद से चांदनी रूठ कर चले ,ऐसा है उनका रिश्ता  हर बार हमसे कुछ इस तरहां ,
 भला कैसे उनकी बातो पर गोर करू ,हर बात उनकी हमे अपनी सासों जैसे लगे ,

1 comment:

  1. किसी की याद में अब हम कलम उठाते हैं
    तमाम रात सितारे गजल सुनाते हैं

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