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Friday, November 4, 2011

कुछ तो गुब्बार लिए दिल में चलु मैं



कुछ तो गुब्बार लिए दिल में चलु मैं ,

सामने वाले को कुछ ना जानु मैं ,

कुछ तो गुब्बार लिए दिल में चलु मैं ,
हो जाने दो तक्कदीरो से टक्कर मेरी ,
इस क़दर बेखबर चलुं मैं
यूं कब तक दिल में समेटे खव्वाब़ चलु मैं
सब से ना सही ना मिलुं मैं
बस एक मरदफ़ा खुद से मुलाक़ात करु मैं ,

कुछ तो गुब्बार लिए दिल में चलु मैं

2 comments:

  1. अच्‍छी भावनाएं....
    पर ...
    गुब्‍बार नहीं गुबार

    चलु नहीं चलूं

    जानु नहीं जानूं

    तक्‍कदीरो नहीं तकदीरों
    खव्‍वाब नहीं ख्‍वाब
    मिलुं नहीं मिलूं

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  2. खूबसूरत रचना, अच्छे शब्द

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