आज कुछ तो अलग करु मैं
खिलखिला कर हंसु मैं
कितना सज्ज़ा है घर
आज कुछ तो अलग करु मैं
है मेरे लिए सब
ये रोशनी और ये फूल
है मेरे लिए सब
आज कुछ तो अलग करु मैं
है तारों का रंग बदला
है आकाश का मिज्जा़ दूसरा
आज कुछ तो अलग करु मैं
सिदूंर , टिका , कंगना
सोल्हा श्रिंगार होगा मेरा
आज कुछ तो अलग करु मैं
कब से बैठी थी फूल पर
तित्तली जैसे
परा़ग ले कर उड़ी मैं
आज कुछ तो अलग करु मैं
क्या – क्या बना है पकवान देखो
जलेबी , रसगूला , दही – पकोंड़ा
आज कुछ तो अलग करु मैं
बीते दिन याद करु
आने वाले दिनों के सपनें बुनू मैं
आज कुछ तो अलग करु मैं
मां – बापू बने ठने है ,
आओ भगत में लगे नतमस्तक खड़ें
आज कुछ तो अलग करु मैं
कुछ पहर में उठेगी
बापू के कांधों पर डोली मेरी
है जिन पर कर्ज़ बढ़ा
आज कुछ तो अलग करु मैं
मेरे बसेरे को बसाने में
अपने बसेरे को गिरवी रखा कहां बापू ???
आज कुछ तो अलग करु मैं
काश होती हाथों कि रेखा
जिसमें लिखा है बापू ने
मेरे भाई का नाम
आज कुछ तो अलग करु मैं
दिया है हाथों में हाथ मेरे जिसका
उसका ऐतबार करु कैसे
उसके संग चलूं कैसे
आज कुछ तो अलग करु मैं
काश तोड़ कर ये प्रथा
उठ खड़ी हों मैं ,
आज कुछ तो अलग करु मैं
नारी हुं अभीमानी मैं काश
सिर उठा कर जी सकुं मैं
आज कुछ तो अलग करु मैं
कदम से कदम मिला कर चलुं
दुनिया में पहचान बनाऊ .
आज कुछ तो अलग करु मैं
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