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Saturday, December 3, 2011

ख़्वाब



लिखने को कहानी चला था में अपनी
जाने किस जोश में
हर बार गिरा ओदें मुंह
मैं होश में

जरा समेट कर ख़्वाब को चलुं फिर
है एक दरिया सामने
गर हो कुछ सामान तो उठा कर चलु फिर

कल के तूफन में कुछ कहा बचा
था कुछ गुमशुदा सा नाम रेत में पड़ा
लेहरों ने उसे भी गुम किया

जाने तकदीर के हाथों में कैसा जीवन मेरा
चलने लगा जमाना और मैं पिछे बैठा
दौड़ने का शोक था और मैं लड़खडाने लगा
ये देख कर हाल मेरा जमाना मुझे चिढ़ाने लगा

क्यो पाला था शोक यूं चांद को छूने का
कि कोई बहलाने को भी ना रहा पास मेरे
कि काश कोई बहलादे दिखा के थाली ही मुझे
और कह दे 
ले ये रहा चांद पास तेरे

बहलावा भी आज मेरे पास ना रहा
मेरी थाली में भी आज चांद मेरे पास ना रहा
ऐसा कोई शख्स़ ओ सामान मेरे पास ना रहा

1 comment:

  1. खोया खोया चांद....
    कुछ वर्तनी की त्रुटि।
    ब्‍लाग की डिजाईन अच्‍छी है पर पोस्‍ट के बेकग्राऊंड में लाल रंग पोस्‍ट को पढने में दिक्‍कत पैदा कर रही है। आंखो पर चुभ रहा है रंग।

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