लिखने को कहानी चला था में अपनी
जाने किस जोश में
हर बार गिरा ओदें मुंह
मैं होश में
जरा समेट कर ख़्वाब को चलुं फिर
है एक दरिया सामने
गर हो कुछ सामान तो उठा कर चलु फिर
कल के तूफन में कुछ कहा बचा
था कुछ गुमशुदा सा नाम रेत में पड़ा
लेहरों ने उसे भी गुम किया
जाने तकदीर के हाथों में कैसा जीवन मेरा
चलने लगा जमाना और मैं पिछे बैठा
दौड़ने का शोक था और मैं लड़खडाने लगा
ये देख कर हाल मेरा जमाना मुझे चिढ़ाने लगा
क्यो पाला था शोक यूं चांद को छूने का
कि कोई बहलाने को भी ना रहा पास मेरे
कि काश कोई बहलादे दिखा के थाली ही मुझे
और कह दे
ले ये रहा चांद पास तेरे
बहलावा भी आज मेरे पास ना रहा
मेरी थाली में भी आज चांद मेरे पास ना रहा
ऐसा कोई शख्स़ ओ सामान मेरे पास ना रहा
खोया खोया चांद....
ReplyDeleteकुछ वर्तनी की त्रुटि।
ब्लाग की डिजाईन अच्छी है पर पोस्ट के बेकग्राऊंड में लाल रंग पोस्ट को पढने में दिक्कत पैदा कर रही है। आंखो पर चुभ रहा है रंग।