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Wednesday, March 2, 2011

समाज का एक पहलु ये भी ....

समाज का एक पहलु बेहद घिनोना भी है ,जो समाज के रख वाले बने फिरते हैं ,जो रीती -रिवाजों के नाम पर फरमान बनाते फिरते हैं ,क्या वे इस पहलु पर गोर नहीं करते या फिर पाखंडपूर्ण जीवन में इस कदर व्यस्त है की किसी ओर पक्ष पर धयान नहीं ,मैं उस घिनोने समाज के पहलु की बात कर रही हु ..जिस में ऐसी  कई घटनाये घटी हैं जहाँ ,अपनी ही बेटी से किसी पिता ने बलात्कार क्या  ,योन-शोषण किया ,कई बार माता का साथ भी पिता को इस कार्य के लिये मिला ,क्या ये दुर्भाग्यपूर्ण बात नही ...?की जिस समाज में किसी प्रेमी युगल की इस लिये हत्या कर दी जाती क्यों की उन्होंने समाज के रीती -रिवाजों को तोडा जो आज -कल खूब चर्चा में हैं 'आनौरकिल्लिंग'
जिसे लेकर खाप-पंचायेतें बड़े उग्र रूप में देखती हैं ,ओर फरमान पे फरमान जारी करती हैं ,
अपने ही गाँव के किसी युवक -युवती से प्रेम सम्बन्ध होने पर पूरा का पूरा गाँव ओर खाप पन्चायेते उसके जान की दुश्मन बन जाती हैं ,प्रेम करना अपराध बना दिया जिसमें अनेक समस्याओ को झेलना पड़ता है ,ओर हत्या का शिकार होना पड़ता है ,
वही जो बाप अपनी ही बेटी का योन -शोषण ,बलात्कार करता है ,वो कई क़ानूनी बारीकियो का फायेदा उठा कर मुक्त भी हो जाता है ,शायद रीती -रिवाजों के ठेकेदारों को इससे कोई लाभ नही मेलेगा या यु कहे की ये उनके तानाशाही सोच के अंतर्गत नहीं आते ,क्यों की ये पहलु तो मानवता की सीमा को पर कर गया ओर मानवता की सीमा तो खाप-पन्चायेते भी पर कर जाती हैं भला अपने समान पहुचने वाले अपराध के खिलाफ कैसे आवाज़ उठा सकतें हैं ,
इन् ठेकेदारों का कार्य तो तानाशाही सोच के अंतर्गत आता है ,लड़कियां जिस्न्स ना पहेने ,मोबाईल फोन ना रखे ,वाय्ग्येरा -वाय्ग्येरा ...इस तानाशाही सोच के बहार के मुदो से उनका कोई सरोकार नही,

राष्टीय महिला आयोग और महिला संगठनों के अस्तित्व में आने से केवल महिलाओ के प्रति होते हत्याचार को नही रोका जा सकता ,इस के लिये समाज को अपनी मानसिकता को झंजोरना पड़ेगा ,अपने विचारो को उन्नत  करना होगा ,अपने दुआर बनाये गए रीती -रिवाजों से ऊपर उठ कर मानवता की ,प्रेम की ,सन्हे की ,अहिंसा की बातो पर विचार करना होगा ,जो बेहद कठिन प्रतीत होता है ,क्यों की आज के समाज में लोगो को ये आदत हो चुकी है की कोई उन्हें बताये क्या करना है ,क्या नही ....जो अपने ऊपर एक ऐसे अधिकारी की कल्पना करते हैं ,जो उनका मार्गदर्शन करे ,क्यों की मानव की समाज में सोचने की ,विचार करने की षमता शिन हो गाई,
 हैं ,उसमें सही गलत का फ्हेसला करने की प्रवति ख़त्म होती जा रही है ,
समाज मैं शमता हैं तो बस वो करने की जो उन्हें कोई बताये उन्हें क्या करना है ,खुद तो वे सोच -विचार करने में असमर्थ दिखतें हैं ,
  समाज के दुर्भाग्येपूर्ण पहलु पर नज़र पड़ भी जाये तो कुछ समय तक उसकी चर्चा कर के भूल जाते हैं ,किन्तु कोई भी समाज का टेकेदार इन् पहलुओ को उस हद तक नहीं लेकर जाता जहाँ मानवता की सीमा को छु सके और उनके लिये  सन्हें ,प्रेम ,दया ,सत्ये ,अहिंसा और कर्तव्य के दुवार खुले गे ,शायद उनको दुवार खोलने से  डर लगता हैं क्योकि वे एक तानाशाही सोच के साथ जीते हैं ,जो ये तय करते हैं की समाज को क्या करना चाहेये ,क्या नहीं ...?
ये विचार करने का कार्य तानाशाही सोच वालो के पास नहीं है ,


*२००८ में उड़ीसा के मल्कनाग्री के कुद्मुलुग्राम गाँव में ३७ वर्षीय भगवन दाकु को अपनी १४ वर्षीय बेटी के साथ बलात्कार के आरोप में गिरफ्तार किया ,
*राजधानी दिल्ली के मंगोलपुरी इलाके में १४ वर्षीय ,सोतेली पुत्री के साथ बलात्कार किया ,राजेश कुमार को गिरफ्तार किया ,
*२० वर्षीय कॉलेज स्टुडेंट ने अपने पिता पर ८ वर्षो से योन -शोषण का आरोप लगाया,आरोपी पिता भाजपा इकाई के महासचिव अशोक को हर्दये की परेशानी और असमान्ये लगने के कारन अस्पताल दाखिल कराया ,
*फिलोरा -जालंदर में NIR  पिता को १३ वर्षीय अपने बेटी के योन -शोषण के मामले में गिरफ्तार किया  ,
*हरियाणा में सोनीपत जिले में एक पिता ने १४ वर्षीय बेटी के साथ डेड साल तक बलात्कार क्या ,
*केवड़ा गाँव के इन्द्रेश गुजर -ऋतू हरिजन प्रेम सम्बन्ध के चलते बुलंद शहर जा कर शाहदी कर ली ,समाज के ठेकेदारों ने उनके परिवार को गाँव से बहिस्कृत कर देय और ऋतू का उसकी माँ के सामने सामूहिक बलात्कार कर बेरहमी से हत्या कर शव को  उत्तराखंड उ.प  की सीमा पर एक खेत में फ्हेक देय ,
*मार्च  में ही मुंबई पुलिस ने एक ६० साल के व्यापारी को अपनी बेटी के साथ बलात्कार करने के आरोप में गिरफ्तार क्या ,जिसमे बेटी की माँ भी शामिल थी ,उन्होंने कहा की ऐसा वे एक तांत्रिक के कहेने पर करते थे ,जिसे घर में तरकी होनी थी ,
*झारखण्ड में एक डोक्टर पिता को अपनी विज्ञानं की पड़ाई,कर रही बेटी का कई वर्षो तक योन -शोसन के आरोपी पिता को गिरफ्तार क्या ,


समाज मैं ऐसी अनगिनत घटनाये होती हैं जहा रक्षक ही भक्षक बनजाता है जो अपने आप में ये समाज का दुर्भाग्य पूर्ण  पहलु  है ,

इन् रीती-रिवाजों के चलते कई महिलाये ,माँ ,बहेन,बेटी ,अन्याय का खिलाफ आवाज़ नही उठाती ,
क्या ये रीती-रिवाज़ इस लिये बने है जो न्याय के रस्ते में रोड़े अटकाए ,?
मनुष्य विचारशील है जो उसको अन्य पशु ,जानवर ,से अलग करता है ,यदि अपनी विचारशीलता का उपयोग बंद करदे तो मनुष्य ,मनुष्य रूप में होकर  भी पशु योनी में जी रहा है ,
जो विचारशील नही है वो अन्याय के खेलाफ़ मुह बंद केए है ...,

2 comments:

  1. गंभीर विषय पर लिखा आपने।
    अच्‍छी पोस्‍ट।
    शुभकामनाएं आपको।

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